सही जगह

एक माँ और एक बच्चा ऊँट एक पेड़ के नीचे लेटे हुए थे।

तब ऊँट के बच्चे ने पूछा, “ऊँटों के कूबड़ क्यों होते हैं?”

माँ ऊँट ने इस पर विचार किया और कहा, "हम रेगिस्तानी जानवर हैं इसलिए हमारे पास पानी जमा करने के लिए कूबड़ है इसलिए हम बहुत कम पानी में भी जीवित रह सकते हैं।"

ऊंट के बच्चे ने एक पल के लिए सोचा और फिर कहा, "ठीक है... हमारे पैर लंबे और पैर गोल क्यों हैं?"

माँ ने उत्तर दिया, "वे रेगिस्तान में चलने के लिए हैं।"

बच्चा रुक गया. ऊँट ने कुछ सोचकर पूछा, “हमारी पलकें लंबी क्यों हैं? कभी-कभी वे मेरे रास्ते में आ जाती हैं।”

माँ ने जवाब दिया, “जब हवा चलती है तो ये लंबी घनी पलकें रेगिस्तान की रेत से आपकी आंखों की रक्षा करती हैं।

बच्चे ने बहुत सोचा। फिर उसने कहा, “अचछा तो जब हम रेगिस्तान में होते हैं तो कूबड़ पानी जमा करने के लिए होता है, पैर रेगिस्तान में चलने के लिए होते हैं और ये पलकें रेगिस्तान से मेरी आँखों की रक्षा करती हैं तो फिर हम चिड़ियाघर में क्यों हैं?”

सीख: कौशल और योग्यताएं तभी उपयोगी होती हैं जब आप सही समय पर सही जगह पर हों। अन्यथा वे बर्बाद हो जाती हैं.


बस एक सवाल

 दूर देश से एक विद्वान एक बार अकबर के दरबार में आया। वह घोषणा करता है कि वह चतुर है और कोई भी उसके प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सकता। विद्वान ने बीरबल को उसके प्रश्न का उत्तर देने और यह साबित करने की चुनौती दी कि वह सबसे चतुर है।

"क्या आप सौ आसान प्रश्नों का उत्तर देना पसंद करेंगे या केवल एक कठिन प्रश्न का?" विद्वान् ने गर्वपूर्ण स्वर में पूछा।

अकबर समझ गये कि विद्वान बीरबल को नीचा दिखाना चाहता है।

लेकिन बीरबल ने आत्मविश्वास से उत्तर दिया, "मुझसे केवल एक कठिन प्रश्न पूछो।"

"ठीक है। मुझे बताओ पहले क्या आया, मुर्गी या अंडा?”, विद्वान ने गरजती आवाज में पूछा।

“मुर्गी,” बीरबल उत्तर देता है।

"आपको कैसे मालूम?" विद्वान मज़ाकिया ढंग से पूछता है।

जवाब में बीरबल कहते हैं, ''हम इस बात पर सहमत थे कि आप केवल एक ही सवाल पूछेंगे, जो आप पहले ही पूछ चुके हैं।''

तो इस तरह बीरबल की हाजिर जवाबी पर अकबर मुस्कुरा पड़ । 

अकबर- बीरबल कहानी : राज्य के कौवे


एक दिन अकबर और बीरबल शाही बगीचे में टहल रहे थे तभी अकबर को पेड़ पर कौवों का एक समूह दिखाई दिया।

राजा बोले, "आश्चर्य है कि राज्य में कितने कौवे हैं, बीरबल?”


"हमारे राज्य में पंचानवे हजार, चार सौ तिरसठ कौवे हैं, श्रीमान।"


अकबर ने आश्चर्य से बीरबल की ओर देखा। "आप यह कैसे जानते हैं?"


“मुझे पूरा यकीन है महामहिम। आप कौवों की गिनती करवा सकते हैं,” बीरबल आत्मविश्वास से बोले।


"क्या होगा यदि कौवे कम हों?" अकबर ने संदेहपूर्वक पूछा।


जहाँपनही, इसका मतलब है कि कौवे पड़ोसी राज्यों में अपने रिश्तेदारों से मिलने गए हैं।


“हम्म… लेकिन बीरबल, अगर आपकी बताई संख्या से ज्यादा कौवे हो गए तो क्या होगा?”


"ठीक है, उस मामले में, दूसरे राज्यों से कौवे हमारे राज्य में अपने रिश्तेदारों से मिलने आए हैं।"

बीरबल के जवाब से अकबर मुस्कुरा उठे।

समय का मोल


 कल्पना कीजिए कि आपके पास एक बैंक खाता है जिसमें हर सुबह 86,400 रूपये जमा होते हैं। आपको हर दिन सारा धन खर्च करना है, कोई नकद शेष नहीं रखना है और हर शाम उस राशि का वह हिस्सा खत्म हो जाता है जिसका आप दिन के दौरान उपयोग करने में विफल रहे थे। अब आप क्या करेंगे? हर रोज़ सारे रूपये निकाल लें।

हम सबके पास भी एक ऐसा बैंक है. जिसका नाम है समय। हर सुबह, यह आपको 86,400 सेकंड देता है। हर रात यह खोया हुआ समय खत्म कर देता है जो भी समय आप बुद्धिमानी से उपयोग करने में विफल रहे हैं। इसमें दिन-ब-दिन कोई केरी फोवरड नहीं होता। यह किसी ओवरड्राफ्ट की अनुमति नहीं देता है इसलिए आप स्वयं उधार नहीं ले सकते हैं या अपने पास से अधिक समय का उपयोग नहीं कर सकते हैं। प्रत्येक दिन, खाता नये सिरे से शुरू होता है। प्रत्येक रात, यह अप्रयुक्त समय को नष्ट कर देता है। यदि आप उस दिन की जमा राशि का उपयोग करने में विफल रहते हैं, तो यह आपका नुकसान है और आप इसे वापस पाने के लिए अपील नहीं कर सकते। उधार लेने का कोई समय नहीं है। आप अपने समय पर या किसी और के बदले में ऋण नहीं ले सकते। आपके पास जो समय है वही आपके पास है। समय प्रबंधन का काम यह तय करना है कि आप समय कैसे खर्च करते हैं, जैसे पैसे के मामले में आप तय करते हैं कि आप पैसे कैसे खर्च करते हैं। मामला यह नहीं है कि हमारे पास काम करने के लिए पर्याप्त समय नहीं है, बल्कि मामला यह है कि हम उन्हें करना चाहते हैं या नहीं और वे हमारी प्राथमिकताओं में कहां आते हैं।

आइसक्रीम

 उन दिनों में, जब एक आइसक्रीम संडे की कीमत बहुत कम होती थी, एक 10 साल का लड़का एक होटल की कॉफी शॉप में दाखिल हुआ और एक मेज़ पर बैठ गया। एक वेट्रेस ने उसके सामने पानी का गिलास रख दिया।

"एक आइसक्रीम संडे कितने की है?"

"50 सेंट," वेट्रेस ने उत्तर दिया।

छोटे लड़के ने अपनी जेब में से हाथ निकाला और उसमें रखे कई सिक्कों का अध्ययन किया।

"सादी आइसक्रीम की एक डिश की कीमत कितनी है?" उसने पूछताछ की. वहां कुछ लोग अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे और वेट्रेस थोड़ी अधीर थी।

"35 सेंट," उसने कठोरता से कहा।

छोटे लड़के ने फिर से सिक्के गिने। उसने कहा, ''मैं सादी आइसक्रीम लूंगा।''

वेट्रेस आइसक्रीम लेकर आई, बिल टेबल पर रखा और चली गई। लड़के ने आइसक्रीम ख़त्म की, कैशियर को भुगतान किया और चला गया।

जब वेट्रेस वापस आई, तो उसने मेज को पोंछना शुरू कर दिया और फिर उसने जो देखा उसे देखकर हैरान हो गई।

वहाँ, खाली डिश के बगल में करीने से रखे हुए, 15 सेंट थे - उसकी टिप।

बुद्ध कथा : राजकुमार का परीक्षण

 🍀 राजकुमार का परीक्षण 🍀

बुद्ध के पास एक राजकुमार दीक्षित हो गया, दीक्षा के दूसरे ही दिन बुद्ध ने उसे किसी श्राविका के घर भिक्षा लेने भेज दिया। रास्ते में उसके मन में खयाल आया कि मुझे जो भोजन प्रिय है, वह तो अब नहीं मिलगा। जब वह श्राविका के घर पहुंचा तो वही भोजन थाली में देख बहुत हैरान हुआ। फिर सोचा संयोग होगा, जो मुझे पसंद है वही आज बना होगा। भोजन करने के बाद उसे खयाल आया कि रोज तो भोजन के बाद वह दो घड़ी विश्राम करता था आज तो फिर धूप में वापस लौटना है। तभी वह श्राविका बोली "भिक्षु बड़ी अनुकंपा होगी अगर आप भोजन के बाद दो घड़ी विश्राम करो। वह बहुत हैरान हुआ। उसने सोचा संयोग की ही बात होगी कि जो बात मेरे मन में आई और उसके मन में भी सहज बात आई होगी कि भोजन के बाद भिक्षु विश्राम कर ले।

चटाई बिछा दी गई, वह लेट गया, लेटते ही उसके मन में खयाल आया कि आज न तो अपना कोई कोई छप्पर है, न अपना कोई बिछौना है, अब तो आकाश छप्पर है, जमीन बिछौना है।

यह सब सोच ही रहा होता है कि श्राविका लौटती है और कहती है "ऐसा क्यों सोचते हैं? न तो किसी की शय्या है, न किसी का बिछौना है।"

अब संयोग मानना कठिन था, अब तो बात स्पष्ट हो गई। वह उठ कर बैठ गया और बोला "मैं बहुत हैरान हूं, क्या मेरे विचार तुम तक पहुंच जाते हैं? क्या मेरा अंत:करण तुम पढ़ लेती हो?" श्राविका बोली" निश्चित ही।"

वह स्वयं के विचारों का निरीक्षण करने लगा। अचानक वह घबराकर खड़ा हो गया और बोला "मुझे आज्ञा दें, मैं जाता हूँ, उसके हाथ-पैर कंपने लगे।" श्राविका बोली" इतने घबराते क्यों हैं? इसमें घबराने की क्या बात है?"

लेकिन भिक्षु फिर रुका नहीं। वह वापस लौटकर बुद्ध से बोला "क्षमा करें,  मैं उस द्वार पर दुबारा भिक्षा मांगने न जा सकूंगा।"

बुद्ध  बोले "वहां कोई भूल हुई?"

उस भिक्षु ने कहा " नहीं, भूल तो कोई नहीं हुई। बहुत आदर-सम्मान मिला और जो भोजन मुझे प्रिय था वह मिला लेकिन वह श्राविका दूसरे के मन के विचारों को पढ़ लेती है, यह तो बड़ी खतरनाक बात है। क्योंकि उस सुंदर युवती को देख कर मेरे मन में तो कामवासना भी उठी, विकार भी उठा, वह भी उसने पढ़ लिया गया होगा। अब मैं वहां कैसे जाऊं? मैं कैसे उसका सामने करूँगा? मैं वहां नहीं जा सकूंगा, मुझे क्षमा करें!"

बुद्ध ने कहा " तुम्हें वहां जाना पड़ेगा। अगर ऐसे क्षमा ही मांगनी थी तो भिक्षु नहीं होना था। जब तक मैं न रोकूंगा, तब तक वहीं जाना पड़ेगा, महीने दो महीने, वर्ष दो वर्ष, निरंतर यही तुम्हारी साधना होगी। लेकिन होशपूर्वक जाना, भीतर जागे हुए जाना और देखते हुए जाना कि कौन से विचार उठते हैं, कौन सी वासनाएं उठती हैं, और कुछ भी मत करना, लड़ना मत। जागे हुए जाना, देखते हुए जाना भीतर कि क्या उठता है, क्या नहीं उठता।"

वह दूसरे दिन भी वहां के लिए निकल पड़ा। वह भिक्षु बहुत खतरे में था, अपने मन को देख रहा था, जागा हुआ था। आज पहली दफा जिंदगी में वह जागा हुआ चल रहा था। जैसे-जैसे उस श्राविका का घर करीब आने लगा, वह और सचेत हो गया। भीतर जैसे एक दीया जलने लगा और चीजें साफ दिखाई देने लगीं। जैसे उसके घर की सीढ़ियां चढ़ा, उसके भीतर एक सन्नाटा छा गया , होश पूरी तरह से जग गया। वह अपना पैर तक उठाता था तो उसे मालूम पड़ रहा था, श्वास भी आती-जाती उसके ध्यान में थी। ज़रा सी कंपन भी उसे महसूस हो रही थी। कोई वासना की लहर भी उसको दिखाई पड़ रही थी। वह घर के भीतर दाखिल हुआ, मन बिलकुल शांत हो गया, वह बिलकुल जागा हुआ था। जैसे किसी घर में दीया जल रहा हो और उससे एक-एक चीज, एक कोना-कोना प्रकाशित हो रहा हो।

वह भोजन के लिए बैठा। वह भोजन करके वापस जाने के लिए उठा। उस दिन वह नाचता हुआ वापस लौटा। बुद्ध के चरणों में गिर पड़ा और बोला "आज एक अदभुत बात हुई। जैसे ही मैं उसके घर के पास पहुंचा और मैं पूरी तरह से जग गया, वैसे ही मैंने पाया कि विचार तो विलीन हो गए, कामनाएं तो क्षीण हो गईं। मैं जब उसके घर के अंदर गया तो मेरे भीतर पूरी तरह से सन्नाटा था, मेरे मन में कोई विचार नहीं था, कोई वासना नहीं थी, वहां कुछ भी नहीं था, मन बिलकुल शांत और निर्मल दर्पण की भांति था।"

बुद्ध ने कहा "इसीलिए तुम्हें वहां भेजा था, कल से तुम्हें वहां जाने की जरूरत नहीं। अब से अपने जीवन में इसी भांति जीओ, जैसे तुम्हारे विचार सारे लोग पढ़ रहे हों। अब जीवन में इसी भांति चलो, जैसे जो भी तुम्हारे सामने है, वह जानता है, वह तुम्हारे भीतर देख रहा है। इस भांति भीतर चलो और भीतर जागे रहो। जैसे-जैसे जागरण बढ़ेगा, वैसे-वैसे विचार, वासनाएं क्षीण होती चली जाएंगी। जिस दिन जागरण पूर्ण होगा उस दिन तुम्हारे जीवन में कोई कालिमा नहीं रह जाएगी। उस दिन एक आत्म-क्रांति हो जाएगी। इस स्थिति के जागने को, इस चैतन्य के जागने को मैं कह रहा था--विवेक का जागरण।

Inspiring story of Malala Yousafzai

Once upon a time, there was a remarkable individual named Malala Yousafzai, who became a symbol of hope, courage, and determination worldwide. Malala was born in 1997 in the Swat Valley of Pakistan, a region known for its breathtaking landscapes but also for the oppressive Taliban rule that sought to deny girls their right to education.

From a young age, Malala was a fervent advocate for girls' education, inspired and supported by her father, Ziauddin Yousafzai, a passionate educator himself. Her father's encouragement and her own inherent curiosity fueled her desire to learn and seek knowledge despite the dangerous circumstances surrounding her.

As the Taliban's grip tightened on the region, Malala's passion for education made her a target. In 2012, at the tender age of 15, tragedy struck when a Taliban gunman boarded her school bus and shot her in the head. The attack aimed to silence her and to send a message to other girls, warning them not to seek an education.

Miraculously, Malala survived the attack, showing incredible resilience and strength during her recovery. Undeterred by the threat against her life, she refused to be silenced. Instead, her voice grew even stronger, and she became an international symbol of resistance against oppression and the fight for education.

The world rallied behind Malala's cause, and she used her newfound platform to advocate for girls' education globally. She delivered powerful speeches at the United Nations and met with world leaders, sharing her personal story and calling for action to ensure every girl's right to education. Her unwavering determination and grace touched hearts and inspired countless people around the world.

In 2014, Malala became the youngest recipient of the Nobel Peace Prize at the age of 17. This prestigious award recognized her extraordinary efforts and dedication to promoting education for girls, regardless of their socio-economic background or cultural constraints.

As she continued to grow into adulthood, Malala co-authored the memoir "I Am Malala" and established the Malala Fund, a nonprofit organization dedicated to advocating for girls' education globally. The fund works to create opportunities for girls to learn, empower them to reach their full potential, and amplify their voices.

Throughout her journey, Malala faced numerous challenges and threats, but her unwavering spirit and resilience never wavered. Her story of bravery and determination serves as an inspiration to millions, proving that one individual, regardless of their age or circumstances, can ignite a powerful movement for change.

Malala Yousafzai's story reminds us that education is a fundamental human right and that even in the face of adversity, one person's determination can make an enormous difference in the world. Her commitment to fighting for girls' education continues to inspire people of all ages to stand up for what they believe in and work towards a more just and equitable world.

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